सब प्रारब्द्ध का खेल है।।

सब प्रारब्द्ध का खेल है।।

जान सबमें एक ही है।
कोई मुरख है कोई ज्ञानी है।
अगर ज्यादा सोचो तो।
बात लगता कुछ बेमेल है।
सब प्रारब्द्ध का खेल है।।
किसी को धन प्यारा है।
किसी को मान सम्मान प्यारा है।
कोई सिंहासन पाता है।
कोई चला जाता जेल है।
सब प्रारब्द्ध का खेल है।।
कुरूप पाकर भी कोई सुखी है।
सुंदर पाकर भी कोई दुखी है।
तन का मिलाप कुछ खास नहीं।
मन का मिलाप ही सही मेल है।
सब प्रारब्द्ध का खेल है।।
मनुष्य तो केवल कठपुतली है।
नचानेवाला कोई और है।
यही सत्य है, यही विश्वास है।
ईश्वर का यह सिद्धांत अपेल है।
सब प्रारब्द्ध का खेल है।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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