बाबा बैजू से बुलावा(ग्रामीण भाषा में एक रचना)

बाबा बैजू से बुलावा(ग्रामीण भाषा में एक रचना)

बाबा बैजु हमन्हीं के बोलैले हथी,अइहो सावन में देवघर ई कहले हथी।
फेर से गंगा जल भरके अइहा सभे बाबा बैजू पे जलवा चढ़ैहा सभे।
बच्चा बूढ़ा बहिन माई सभे सुन्हो,बाबा सबके सावन में बोलैले हथू।
छोड़के जूता चप्पल घरे में सभे,खाली गोड़े सभे अइहा कहले हथू।
चाहे कांवर लेके चाहे पिट्ठू लेके डाक कांवर भी लेके बोलैले हथू।
अबरी भी गंगा बालू बिछावल गलै डेगें डेगें शिविर भी लगावल गलै।
पूरा पथ देखो फेर से सजावल गलै सब जगह देखो झरना लगावल गलै।
व्यवस्था बहुते बाबा कैले हथू फेर से बाबा सबके बोलैले हथू।
बोल बम के तू नारा लगैते रहो बाबा पर ही भरोसा बनैले रखो।
बोल बम बोल बम बोल आगे बढ़ो ध्यान बाबा के मनसे तू करते रहो।
पार बेड़ा ई बैजू लगावो हथी ई विश्वास पूरा बनैले रखो।
तारापुर फिर कुमरसार सुइया सभे बोल बम बोलके पार करते रहो।
अबरखवा गोड़ियारि दूमा बोडर बाबा के नाम पर पार करते रहो।
बाबा सबके परीक्षा भी लेवो हथी, गोड़ें छाला जांघें काछ देवों हथी।
कष्ट सहके भी बोल बम करते रहो बाबा के डगर सभे चलते रहो।
दर्द दलथी बबा दर्द हरथी बबा बस इहे सोचके आगे बढ़ते रहो।
-सुशील कुमार मिश्र


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