डोली में आना अर्थी पर जाना

डोली में आना अर्थी पर जाना

 जय प्रकाश कुवंर
यह मात्र कोई कहावत नहीं है, बल्कि एक हकीकत है उन्नीस सौ पचास- साठ के पहले के दशक की, जब हमारे समाज में लड़के लड़कियों की शादी कम उम्र में लड़की को बिना देखे सुने कर दी जाती थी, और उसे अपने पति के साथ ससुराल में पुरा जीवन गुजारना पड़ता था। उन दिनों लड़की शादी के बाद अपने माता पिता के घर से डोली में बिदा होकर अपने ससुराल आती थी और अपनी सारी उम्र ससुराल में गुजारने के बाद अंतिम समय में अर्थी पर सवार होकर श्मशान घाट जाती थी और दूनिया से बिदा हो जाती थी।
सुरेश आज ही इंग्लैंड से लौटा है और अपने दादा के साथ बैठकर आपबीती सुना रहा है। वह अपने दादा का एकलौता पोता है, जो अपने देश से पढ़ाई लिखाई पूरी करने के पश्चात तथा इंग्लैंड में उच्च शिक्षा लेने के बाद इंग्लैंड में नौकरी करता है। उसके दादी और माता पिता का देहांत हो चुका है। उसके दादा गाँव में अकेले रहते हैं और खाना पीना तथा घर का सारा काम नौकरों के भरोसे चलता है।
सुरेश ने अपने दादा दादी तथा अपने माता पिता के मर्जी के खिलाफ इंग्लैंड में ही वही के भारतीय मूल के एक हिन्दू लड़की मीनाक्षी से, जो उसके साथ उसके दफ्तर में ही काम करती थी , प्रेम विवाह कर लिया था और इंग्लैंड में ही सुख चैन से रहता था। उसके शादी में उसके परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं हो पाया था। परंतु मीनाक्षी के माता पिता शामिल हुए थे। शादी के बाद कुछ समय तक तो दोनों में खुब प्रेम रहा, परंतु धीरे धीरे दोनों में छोटी छोटी बातों को लेकर मनमुटाव बढ़ने लगा। हालात रोज गाली गलौजऔर मारपीट तक पहुँच गयी। सुरेश के लाख समझाने के बावजूद भी मामला कोर्ट तक चला गया और अंततः दोनों में तलाक़ हो गया। अब सुरेश वहाँ एकाकी जीवन गुजार रहा था और उसके दादा जी यहाँ गाँव में अकेले रहते थे। उसे अपने देश और गांव और अपने दादा जी की याद आई और दफ्तर से कुछ दिनों के लिए छुट्टी लेकर गाँव अपने दादा जी के पास आ गया।
उसके दादा जी ने जब उसकी शादी टूटने की दुखद कहानी सुनी तो उन्हें काफी दुख हुआ। यह जानकर वो और भी ज्यादा दुःखी हुए कि सुरेश अब भी मीनाक्षी को बहुत चाहता है और उसे प्यार करता है , परंतु तलाक़ हो जाने के कारण दोनों अलग अलग अपने घरों में रहते हैं। वो दोनों आज भी एक ही दफ्तर में काम करते हैं, पर दोनों में कोई बात चीत नहीं होती है। दादा जी ने सुरेश से आग्रह किया कि वह इस बार लौटते समय उन्हें भी अपने साथ ले चले और एक बार मीनाक्षी तथा उसके माता पिता से मिलवाये। सुरेश ने दादा जी को अपने साथ इंग्लैंड ले जाने की सारी व्यवस्था की और उन्हें लेकर अपने घर इंग्लैंड आ गया। यहाँ आकर उसने मीनाक्षी तथा उसके माता पिता को बताया कि उसके दादा जी यहाँ उसके साथ आये हुए हैं और एक बार आप सभी लोगों से मिलना चाहते हैं, जिस पर वो लोग राजी हो गये। निर्धारित दिन और समय पर उन लोगों की मुलाकात मीनाक्षी के माता पिता के घर पर ही हुई। कुछ आवभगत के बाद मीनाक्षी और सुरेश के शादी और फिर शादी टूटने की बात शुरू हुई।
सुरेश के दादा जी ने मीनाक्षी को बताया कि हम भारतीय लोग चाहे भारत में रहें या फिर किसी और देश में रहें, भारतीय ता एवं भारतीय संस्कार हमारी पहचान है। हम चाहे जितने भी आधुनिक क्यों न हो लें, हम भारतीय लोग अपने संस्कार को हमेशा बनाये रखने की कोशिश करते हैं। लड़की लड़का की शादी हमारे भारतीय समाज में एक बहुत ही उतम संस्कार माना जाता है। बदलते समय के अनुसार यह तो बहुत ही अच्छा है कि आज कल लड़की लड़का एक दूसरे को अच्छी तरह से देख सुन कर और जानकर ही शादी करने का निर्णय लेते हैं, और फिर शादी करते हैं। फिर चाहे वह शादी स्वेच्छा से हो अथवा अभिभावकों की सहमति से हो। फिर चाहे वह शादी सामाजिक तरीके से हो अथवा अन्य प्रचलित तरीके से हो। शादी का मुख्य उद्देश्य लड़की लड़का की खुशी होता है। सुरेश के दादा जी ने बताया कि उनके जमाने में और यहाँ तक की सुरेश के माता पिता के जमाने तक शादी बिना लड़की को देखे ही होती थी। लड़की का चेहरा और शरीर लड़का तथा उसके परिवार के लोग तो तब देखते थे, जब वह शादी के बाद अपने माता पिता के घर से बिदा होकर ससुराल आती थी। हाँ, लड़की के पिता और परिवार के अन्य पुरुष लोग लड़का को देखकर ही शादी तय करते थे। उनका मानना था कि शादी की जोड़ियाँ ईश्वर के यहाँ बनती हैं, हम मनुष्य केवल खोज कर निकाल लेते हैं और उनकी शादी कर देते हैं।उन दिनों लड़की को देखने का रिवाज भारतीय समाज में नहीं था। फिर भी एक बार शादी हो जाने के बाद लड़की लड़का सुखी जीवन अपने जीवन के अंत तक बिताते थे और डोली में चढ़कर ससुराल आई हुई लड़की का अंतिम बिदाई उसके मरने के बाद ससुराल से अर्थी पर ही श्मशान घाट के लिए होता था। यह है हमारी भारतीय संस्कृति और हमारा भारतीय समाज एवं परिवार। हमारे हिन्दू धर्म में शादी के बाद तलाक़ और डाईभोर्स नाम की कोई चीज है ही नहीं। हमारे विद्वान पूर्वजों ने शादी टूटने के लिए ऐसा कोई शब्द ही नहीं बनाया था जो शादी टूटने को दर्शाता है। ये तलाक़ और डाईभोर्स मुस्लिम और क्रिश्चियन लोगों में क्रमशः होता है, हमारे हिन्दू संस्कृति में नहीं। हम शादी ब्याह को एक उत्तम संस्कार मानते हैं, जिसका अंत मरने के साथ ही होता है। बेटी मीनाक्षी तुमने और सुरेश ने, जो दोनों ही हिन्दू धर्म के मानने वाले हैं, एक दूसरे को देख समझ कर शादी किया है, और दोनों एक दूसरे को प्रेम करते हैं, उनके बीच यह तलाक़ कहाँ से आ गया। तुम दोनों की शादी प्रेम के बंधन में बंधी हुई है और अटूट है।
सुरेश के दादा जी की बातों का गहरा प्रभाव मीनाक्षी पर एवं उसके माता पिता पर पड़ा और एक बार फिर से भारतीयता एवं भारतीय संस्कार उनके जेहन में उतर आया। मीनाक्षी ने सुरेश के दादा जी के पैर छुए और अपनी गलती को सुधारने के लिए उनसे परामर्श लिया। सुरेश के दादा जी ने और मीनाक्षी के माता पिता ने मिलकर यह निर्णय लिया और इस बार उन दोनों की शादी पुनः भारतीय रिवाज से किया गया तथा आधुनिकता के अनुसार इस बार मीनाक्षी की बिदाई उसके माता पिता के घर से इंग्लैंड में सुरेश के घर के लिए डोली की जगह सुसज्जित मोटर गाड़ी में हुई। सुरेश और मीनाक्षी को सबों का शादी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। सुरेश के दादा जी ने यह महशुस किया कि अब वे दोनों काफी खुश हैं और खुब प्रेम से जीवन बिता रहे हैं। अपने पोता और बहू के आग्रह पर कुछ दिनों तक इंग्लैंड में उनके घर रहने के पश्चात उनके दादा जी अपने वतन भारत वापस लौट आये। 

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