वह रात..

वह रात..

वह रात भुलाए नहीं भूलती
जब मैं आहत थी लोगों के बुरे व्यवहार से
दिल दुखी था
आंखें बोल रहीं थी मेरे मन की गाथा
और अनायास तुम आ गए
पढ़कर मेरे आंखों को
तुमने मुझे गले लगा लिया था
और पीठ सहलाते हुए कहा था -
ईंट का जबाव पत्थर से देना सीखो
और हाँ, एक बात और
बुरे लोगों की बुरी बातों को दिल से मत लगाओ
तुम तो दिल जीतना जानती हो
जीतने के लिए सकारात्मकता जरूरी है तो
नकारात्मकता को दूर फेंकना भी जरूरी है
तुम्हारी बातें सुनकर
मेरी आंखें आत्मविश्वास से चमकने लगीं
वह रात मेरे मनोबल के पुनर्जन्म की रात थी.
-सविता शुक्ला
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