सर्वोच्च न्यायालय ने दिया मुस्लिम महिलाओं को हक

सर्वोच्च न्यायालय ने दिया मुस्लिम महिलाओं को हक

मनोज कुमार मिश्र
सर्वोच्च न्यायालय की एक खंड पीठ ने हाल में ही एक अपराधिक मामले में एक मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति श्रीमती नागरत्ना और न्यायमूर्ति अगस्टिन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने दिया है। दोनो ने अलग अलग फैसलों में लेकिन एक ही बात कही कि सीआरपीसी की धारा 125 जी भारतीय न्यायसंहिता की धारा 79 बन चुकी है धर्म के आधार पर इन मामलों में किसी प्रकार के भेदभाव की इजाजत नहीं देता। इस फैसले से एक बार पुनः संविधान को शरिया से ऊपर करार दिया गया है। इस फैसले ने उन मुस्लिम।महिलाओं के लिए बड़ी राहत प्रदान की है जो तलाक के खेल का शिकार बन जाती हैं और इनके सारे हक और हक़ूक छीनकर उन्हें घर से बाहर कर दिया जाता है। अब हिन्दू महिलाओं की तरह वे भी अपने पूर्व पति से गुजरा भत्ता ले पाएंगी। न्यायाधीशों ने इस निर्णय में यह भी कहा कि तलाकशुदा महिला की दूसरी शादी के बाद भी यह गुजारा भत्ता उनको मिलता रहेगा। ये ज्यादा बड़ा पेंच है। जाहिर सी बात ही की मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस फैसले के विरुद्ध अपनी कमर कस रहा है। पर इस फैसले ने भारत के गैर भाजपा राजनीतिक दलों के सामने सांप छछूंदर की स्थिति पैदा कर दी है। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के सामने एक बार फिर से शाहबानो केस का जिन्न प्रकट हो गया है जिसे उन्होंने राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में बड़ी आसानी से दफना दिया था। देवबंद का मौलाना मसूद मदनी पहले ही कह चुका है कि 2024 का चुनाव बीजेपी से मुसलमानों का बदला था। पर यह संकट सिर्फ कांग्रेस का नहीं है परन्तु सभी क्षेत्रीय दलों का भी है जो अपनी जीत के लिए मूलतः मुस्लिम मतों पर निर्भर रहते हैं। अब अगर ये सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत करें तो उनका बड़ा वोट बैंक बिदकता है और अगर विरोध करें तो हिन्दुओं के सामने उनकी कलई खुलती है।
यह भी निश्चित है कि भाजपा इस निर्णय के समर्थन में होगी या मौन साध लेगी पर इस निर्णय को बदलने की कोई कोशिश नहीं करेगी। हां वह भी इसे ठंडे बस्ते में डालने के लिए कोई कमेटी गठित कर सकती है जिसकी विवेचना कभी खत्म ही न हो। पर खतरा यह है कि जो वोट बैंक अभी अभी के चुनाव में उसके प्रति अपनी नाराजगी जाहिर कर चुका है वह उससे और भी दूर हो जाए जो उसके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा देगा।
इतना तो निश्चित है कि इस निर्णय को एक बड़ी पीठ के सामने चुनौती दी जाएगी। तब ऊंट किस करवट बैठेगा यह देखना मजेदार होगा क्योंकि विगत कई फैसलों में जो मुस्लिम रीति रिवाजों से संबंधित थे यही न्यायालय शरिया क्या कहता है इसकी व्याख्या मांग चुका है। एक और प्रश्न यह भी उठ सकता है कि इस फैसले में कोई मुस्लिम जज शामिल नहीं था अतः इसे पूर्ण फैसला नहीं मान सकते।
मजे की बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय भारत की राजनीति की दशा और दिशा दोनों बदलने की क्षमता रखता है।- 
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