सुग्रीव से मित्रता और बालि वध

सुग्रीव से मित्रता और बालि वध

डॉ राकेश कुमार आर्य
कबंध ने अपनी पराजय के पश्चात श्री राम और लक्ष्मण जी को यह बताया था कि यदि वह अपने मनोरथ में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें सुग्रीव नाम के वानर के साथ मित्रता करनी चाहिए। इंद्र पुत्र बाली ने क्रुद्ध होकर अपमानजनक ढंग से उसे राज्य से निकाल दिया है। वह वानर पंपा सरोवर के तट पर ऋष्यमूक नामक सुंदर पर्वत पर इस समय निवास कर रहा है। वह तुमसे मित्रता करेगा और सीता के ढूंढने में तुम्हें सहायता भी देगा। हे राम ! अब आप यहां से शीघ्र ही महाबली सुग्रीव के पास जाइए। जब श्री राम निर्धारित स्थान पर पहुंचे तो वहां के स्थानीय गुप्तचर लोगों ने महाबली सुग्रीव को जाकर बताया कि दो अपरिचित से राजकुमार इस समय हमारे देश में घूम रहे हैं। इस पर महाबली सुग्रीव ने इन राजकुमारों की वास्तविकता जानने के लिए हनुमान जी को भेजा। तब:-

सुग्रीव मित्र की खोज में, आगे बढ़े श्री राम।
शंकित हुए सुग्रीव ने , भेज दिए हनुमान।।

पहुंच गए हनुमान जी, राम लखन के पास।
प्रणाम किया श्री राम को और किया गुणगान।।

सुग्रीव की ओर से रख दिया, मैत्री का प्रस्ताव।
स्वीकार किया श्री राम ने , सहर्ष वह प्रस्ताव।।

हनुमान जी जानते थे कि उनके स्वामी सुग्रीव को इस समय मित्रों की खोज है श्री राम और लक्ष्मण जी को प्रथम दृष्टया ही उन्होंने समझ लिया कि ये दोनों ही महातेजस्वी राजकुमार किसी समय विशेष पर सुग्रीव का सहयोग कर सकते हैं । इसलिए उन्होंने सुग्रीव की ओर से मैत्री का प्रस्ताव रखा। उधर श्री राम को भी उस समय मित्रों की आवश्यकता थी। उन्होंने सुग्रीव की ओर से हनुमान जी द्वारा रखे गए उस मैत्री प्रस्ताव को यथाशीघ्र स्वीकार कर लिया। हनुमान जी से मित्रता होने के उपरांत लक्ष्मण जी ने अपने व्यथा कथा से उन्हें परिचित कराया।

पवन पुत्र हनुमान से, बोले लक्ष्मण भ्रात ।
अनुज हूं मैं श्री राम का, आया उनके साथ।।

सीता हर कर ले गया, एक राक्षस नीच।
खोज उसी की कर रहे , सभी वनों के बीच।।

बालि और सुग्रीव का , दिया सुना सब हाल।
सच-सच बतला दिया, बालि का अपराध।।

सुग्रीव के संग श्री राम ने , किया यह अनुबंध।
कठिनाई के हर काल में, निभाएंगे संबंध।।

राजनीति मित्रता के लिए किन्ही सांझा हितों को खोजा करती है। जब दो राजनीतिज्ञों को कोई ऐसा सांझा उद्देश्य या सांझा हित प्राप्त हो जाता है जिस पर वे दोनों मिलकर काम कर सकते हैं तो राजनीति के संबंध बहुत शीघ्रता से स्थापित होते हैं। यहां पर श्री राम जी और सुग्रीव दोनों को एक ही प्रकार की पीड़ा थी कि दोनों की पत्नियों का राक्षस प्रवृत्ति के लोगों ने हरण कर लिया था। इस पीड़ा के निदान के लिए दोनों यथाशीघ्र एक दूसरे के हो गए। स्थिति परिस्थिति का एक आंकलन यह हो सकता है, जबकि एक दूसरा आंकलन यह भी हो सकता है कि श्री राम जी अपने समय में राक्षस और आतंकवादी प्रवृत्ति के लोगों के समुलोच्छेदन के लिए मैदान में उतरे थे। इसके लिए सकारात्मक सोच रखने वाले लोगों की उन्हें उस समय खोज थी और इसी खोज के अध्याय को पूर्ण करने में सहायता देने वाले व्यक्ति के रूप में उन्हें सुग्रीव और हनुमान प्राप्त हो गए। अपने मित्र सुग्रीव की पीड़ा हरते हुए श्री राम जी ने सर्वप्रथम उसके भाई बाली का वध किया। जिसने अनुचित और अनैतिक कार्य करते हुए अपने भाई की पत्नी का अपहरण कर लिया था।

बाली वध किया राम ने, रखी मित्र की लाज।
पापी , कामी ,नीच का, हो गया ठीक इलाज।।

बाली धरा पर गिर गया, बोला ! सुनो श्री राम।
जो कुछ भी तुमने किया, ठीक नहीं वह काम।।

उत्तर दिया श्री राम ने, सुनो ! बाली तुम नीच।
पर नारी को हर लिया, काम नहीं था ठीक।।

नीच कर्म का दंड दूं , यह मेरा अधिकार।
रीति यही रघुवंश की, कहता सब संसार।।

पापी तेरे पाप का , दिया है मैंने दंड।
पापी पाप से मुक्त हो, राजा देता दंड।।

हाथ जोड़ बाली कहे , क्षमा करो श्री राम।
आपके सच्चे रूप को, जान चुका मैं आज ।।

( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )
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