पहले तो खुब मचलती थी,
पर अब वह कहाँ है खो गयी।तुम मेरे अनुमान से पहले ही,
लगता है कि बुढ़िया हो गयी।
पर क्या करें यह मन बुढ़ा होना जानता ही नहीं,
यह पागल मन, उम्र की सीमा मानता ही नहीं।
हकीकत जान कर चुप रहना,
अब लगता है कि ठीक है।
बुढ़ौती में भी मन को रफ्तार देने में,
सुकून नहीं, केवल तकलीफ है।
जय प्रकाश कुवंर
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