प्रथम प्रणय गीत तुम हीं,

प्रथम प्रणय गीत तुम हीं,

प्रयाण के अंतिम संगीत हो।
अंतस तम में किरण तुम हीं,
बंद अधरों की प्रीत हो।
मलय पवन के सौरभ तुम,
जग पा गयी वो जीत हो।
मरुथल के विकल उर में,
मधुबूँद बरसे वो शीत हो।
प्रलय पथ के परागकण हो,
वर्तमान,भविष्य,अतीत हो।
जो तुम हो वो कोई नहीं,
उनींदी श्वासों के जीवनगीत हो।
जीवन के कोरे पन्नों की गाथा,
भाव लिपि की रीत हो।
सित ,असित यादों की बदरी,
कनक कलश तुम पीत हो।
डॉ रीमा सिन्हा 
लखनऊ
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