दर्द के भी दर्द को महसूस करके देखिए,
अपने पराये को महसूस करके देखिए?हो सके तो ग़ैर के दर्द में भी शामिल रहो,
निज दर्द को तन्हा महसूस करके देखिए।
दर्द में कोई हो शामिल, तब हमें अच्छा लगे,
निःस्वार्थ भाव आ मिलें, तब हमें अच्छा लगे।
क्या कभी हम भी चले, दर्द की उस राह पर,
समाज में मिलकर चले, तब हमें अच्छा लगे।
अ कीर्ति वर्द्धन
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