बाबूलाल मधुकर के निधन से मगही साहित्य के एक देदीप्यमान नक्षत्र का अवसान : डा अनिल सुलभ

बाबूलाल मधुकर के निधन से मगही साहित्य के एक देदीप्यमान नक्षत्र का अवसान : डा अनिल सुलभ

  • साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई शोक-सभा, इस वर्ष से उनके नाम से आरंभ होगा स्मृति-सम्मान।
पटना, 15 जुलाई । मगही और हिन्दी के यशस्वी कवि और बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य बाबूलाल मधुकर के निधन से साहित्य-जगत में शोक व्याप्त है। उनके निधन पर, सोमवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में शोक-सभा आयोजित हुई, जिसमें साहित्यकारों ने उनके साहित्यिक अवदानों को स्मरण करते हुए उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। शोक-सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि अपनी विपुल रचनात्मक कृतियों और अवदानों से मधुकर जी ने मगही साहित्य को समृद्ध किया। एक कवि, कथाकार और नाटककार के रूप में उन्होंने पर्याप्त ख्याति अर्जित की। “रमरतिया” नामक उनके प्रथम उपन्यास ने ही, उन्हें मगही साहित्य में स्थापित कर दिया। उसे मगही का प्रथम आंचलिक उपन्यास भी माना जाता है। उन्होंने “मगही मेघदूत”, “रुक्मिणी के पाती” और 'विदुषी मंदोदरी' नाम से प्रबंध-काव्य भी लिखे। इनके अतिरिक्त 'अंगुरी के दाग' (मगही काव्य-संग्रह, 'मक्खलि गोसाल' (मगही खण्ड काव्य), 'कान्हा तुम्हें द्रौपदियां पुकारें', 'नंदलाल की औपन्यासिक जीवनी' (आत्मकथा केंद्रित), 'नायक भोर' (नाटक) और हिन्दी उपन्यास 'फ़ातिमा दीदी' आदि उनकी कृतियाँ साहित्य की धरोहर हैं।
डा सुलभ ने कहा कि मधुकर जी से उनके चार दशकों के आत्मीय और प्रगाढ़ संबंध रहे। उनके चर्चित खण्ड-काव्य “मगही मेघदूत” की भूमिका लिखते हुए, उनके अन्य सूक्ष्म अवदानों को भी समझने का अवसर मिला। मधुकर जी का संपूर्ण जीवन पीड़ा और पीड़ा पर विजय पाने की तपो साधना की रोचक गाथा है, जिसे उनके साहित्य में समझा जा सकता है। साहित्य सम्मेलन से भी उनका गहरा संबंध था। वे सम्मेलन के उपाध्यक्ष भी रह चुके थे। सम्मेलन ने उन्हें विविध अलंकरणों से सम्मानित भी किया। लोक नायक जय प्रकाश के आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही।आंदोलन के दौरान नुक्कड़ों पर हो रहे कवि-सम्मेलनों के भी वे अग्र-पाँक्तेय कवि थे। उनके निधन से साहित्य जगत को भारी क्षति पहुँची है। डा सुलभ ने घोषणा की कि इस वर्ष से उनके नाम से स्मृति-सम्मान आरंभ किया जाएगा, जो किसी साहित्यकार को मगही में किए गए मूल्यवान साहित्यिक अवदान के लिए दिया जाएगा।
वरिष्ठ कवयित्री विभा रानी श्रीवास्तव, डा अर्चना त्रिपाठी, कुमार अनुपम, प्रो सुशील कुमार झा, श्रीकांत व्यास, पत्रकार हृदय नारायण झा,कौशलेन्द्र पाण्डेय, कृष्ण रंजन सिंह, नन्दन कुमार मीत, भगवती प्रसाद द्विवेदी, डा एम के मधु, डा शशि भूषण सिंह आदि ने भी अपने शोकोदगार व्यक्त किए । सभा के अंत में दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत-आत्मा की शांति और सद्गति के लिए प्रार्थना की गयी। स्मरणीय है कि रविवार की संध्या साढ़े चार बजे पटना के एक निजी अस्पताल में 83वर्ष की आयु में, मधुकर जी ने अपनी अंतिम साँस ली। वे प्रोस्टेट की समस्या से पीड़ित थे। उनका अग्नि-संस्कार सोमवार की संध्या, उनके पैतृक ग्राम, नालन्दा के इस्लामपुर प्रखण्ड स्थित ढेकवाहा में किया गया। मुखाग्नि उनके एक मात्र पुत्र अतुकान्त मधुकर ने दी।
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