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पानी बहता ही जाए

पानी बहता ही जाए

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
पानी बहता ही जाए, बहता जाए,
कण कण में क्षण क्षण रूप बदलता जाए।
मुँह में कुछ रहता है और पेट में कुछ,
हर शख्स दूसरे को यों छलता जाए।
है अनादि से मत्स्य-न्याय ही बरकरार,
दुनिया में ताक़तवर ही पुजता जाए ।
न्याय गजब पर्वरदिगार का, साथी!
यथाशूर को तथाशूल मिलता जाए ।
मेघ नहीं डरता पानी बरसाने से, 
चाहे जितना भी गगन गरजता जाए।
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