सुन्दरता एक अभिशाप ( एक संस्मरण )

सुन्दरता एक अभिशाप ( एक संस्मरण )

 जय प्रकाश कुवंर
आज अस्पताल में सन्नाटा छाया हुआ है। डाक्टर से लेकर मरीज तक सभी गमगीन हैं, विशेषकर डाक्टर रमेश। आज रजनी का अंत जो हो गया है। वह अस्पताल के फिमेल वार्ड में एक बेड पर सफेद चादर में लिपटी हुई मृत अवस्था में पड़ी हुई है। आज छुपकर रोने वाले डाक्टर रमेश के अलावा उसका कोई सगा उसके लाश पर रोने वाला नहीं है। पिछले दश दिन पहले मुहल्ले वालों ने उसे चक्कर आने और कंपकंपी के चलते लाकर इस नजदीकी ग्रामीण अस्पताल में भर्ती कर दिया था।
रजनी, जो अब अपने उम्र के बीसवीं पायदान पर पहुँच चुकी थी, एक गरीब दाई की लड़की थी, जिसे भगवान् ने एक गरीब के घर में पैदा किया था, परंतु उसे एक असीम सुंदरता से नवाजा था। उसके सुंदर काया का कोई शानी नहीं था, जिसे देखकर कोई भी पुरुष मोहित हो सकता था। उसकी माँ एक अमीर सेठ के घर में वर्षों से दाई का काम करती थी, जब रजनी एक छोटी बच्ची थी। उसके पिता उसके बचपन में ही गुजर चुके थे और उसका परिवरिश उसकी माँ सेठ के घर में दाई का काम करके कर रही थी। सेठ धनीराम के परिवार में भी उनके पत्नी के सिवा उनका एकलौता पुत्र रमेश था जो उम्र में लगभग रजनी से दश साल बड़ा था। रजनी पैसे के अभाव में मामूली शिक्षा प्राप्त कर सकी। उधर रमेश पिता के पैसे के बलबूते पर पढ़ लिख कर डाक्टर बन गया और उसकी तैनाती ग्रामीण इलाके के एक अस्पताल में हो गई। सेठ धनीराम जितने अच्छे स्वभाव के व्यक्ति थे, उनकी पत्नी मायादेवी उतने ही दुष्ट और लालची स्वभाव की औरत थी। दुर्भाग्यवश सेठ धनीराम की मौत अस्वाभाविक रूप से एक सड़क दुर्घटना में हो गई जब वे किसी कामवश शहर जा रहे थे। अब घर तथा करोबार की मालकिन मायादेवी ही थी। चूकि घर में बचपन से ही रमेश और रजनी साथ ही रहे और बड़े हुए थे अत: रमेश मन ही मन बड़े होने पर रजनी की सुंदरता पर मोहित था और उसे प्रेम करता था। रजनी भी उसे दिल से चाहने लगी थी परंतु अपने और रमेश के बीच की सामाजिक दूरी को समझ प्रगट नहीं होती थी। उधर मायादेवी अपने दाई कुसुम की लड़की रजनी का रमेश के प्रति व्यवहार देख हरदम चौकन्ना रहती थी।
रमेश के साथ उसकी नजदीकी मायादेवी को पसंद नहीं था। रजनी की अल्हड़ जवानी देख वह मन ही मन कुढ़ती थी, पर उसकी माँ के काम के चलते वह उसे वहाँ से हटा नहीं सकती थी। रमेश का प्यार रजनी के लिए अब इतना बढ़ गया था कि वह हर सामाजिक मर्यादा को तोड़ कर रजनी से ब्याह कर लेना चाहता था। इस बीच रमेश की तैनाती एक सुदूर ग्रामीण अस्पताल में हो गई और रजनी की माँ का देहांत हो गया। अब मायादेवी किसी तरह रजनी से पिंड छुड़ाना चाहती थी, क्योंकि उनका बेटा रमेश रजनी को छोड़ किसी और लड़की से शादी के लिए तैयार नहीं था। मायादेवी सोचती थी कि उसके लड़के की घर के दाई की लड़की से शादी होने पर परिवार की इज्जत चली जाएगी और परिवार का नाक कट जाएगा। इस लिए एक षड़यंत्र के तहत उन्होंने रजनी की शादी दूर के एक गाँव के एक अधबुढ़ किसान के साथ सौदा करके कर दिया। अब रजनी उस अधबुढ़ किसान के घर चली गई और उसके पत्नी के रूप में रहने लगी। इधर मायादेवी ने रमेश के न चाहते हुए भी उसकी शादी एक अमीर घर में अच्छा खासा दान दहेज लेकर कर दिया। लेकिन रजनी अब भी उसके दिल में बसी हुई थी।
इधर रजनी अपने जीवन और जवानी के उफान पर थी और वह भी रमेश को इतनी आसानी से भुला नहीं पा रही थी। वह हर समय रमेश के प्यार और शारीरिक सुख के लिए तड़पती रहती थी। उसका शादी उस अधबुढ़ किसान मर्द के साथ केवल एक घर चलाने के लिए एक सौदा था, परंतु उससे उसे कोई शारीरिक सुख नहीं प्राप्त होता था। वह वस्तुतः एक नपुंसक मर्द था। उसकी सुंदरता और जवानी तड़प तड़प कर बित रही थी। इस कारण वह अस्वस्थ रहने लगी और उसे मेंटलडिसाडर कहा जाने लगा। उसे बार बार चक्कर आता था। उसके दिल के दर्द और बिमारी को समझने वाला दूनिया में कोई नहीं था। उसके पति के बुलाने पर आए गाँव के ओझा गुनी लोगों ने उसे भुतग्रस्त महिला करार दे दिया। और वे अपने तरह से उसका इलाज जड़ी बूटी से करने लगे। गाँव जवार के कुछ झोलाछाप डाक्टरों ने उसे हिस्टीरिया का रोगी बताया और कहा कि यह रोग लड़कियों को किशोरावस्था के अंत और वयस्कता की शुरुआत में होता है। इसे पहले सेक्स या फिर यौन संयम से ठीक किया जाता था। उन्होंने यह भी बताया कि यही कारण है कि एक विदेशी डाक्टर ने सुझाव दिया था कि अविवाहित और विधवा जवान महिलाओं को शादी कर लेनी चाहिए और विवाह की शीमा के भीतर एक संतोषजनक यौन जीवन जीना चाहिए। उनका यह भी मानना है कि हिस्टीरिया रोग का कारण गर्भाशय का हरकत है। इन सारे तर्क वितर्क और ओझा गुनी तथा झोलाछाप डाक्टरों के जड़ी बूटी से इलाज करने के बावजूद रजनी की बेचैनी और चक्कर आने का क्रम बढ़ता ही गया। उसे शारीरिक सुख कभी मयस्सर नहीं हुआ। इस बीच उसके पति का भी देहांत हो गया। अब रजनी को देखने सुनने वाला कोई भी परिवार में नहीं रहा। बार बार चक्कर आने और कंपकंपी के बावजूद भी रजनी का शरीर उसी तरह सुंदर और सुडौल दिखता था।
अब जब उसकी हरकतें कुछ ज्यादा ही अभद्र दिखाई पड़ने लगी तो गाँव वाले भी परेशान रहने लगे। अब वह समय कुसमय अपने घर के दरवाजे के बाहर नग्न अवस्था में निकल जाती थी। उसकी इन हरकतों से तंग आकर गाँव वालों ने उसे नजदीकी ग्रामीण अस्पताल में ले जाकर भर्ती कर दिया। उसकी पूरी जानकारी प्राप्त कर उसे अस्पताल के फिमेल वार्ड में रखा गया। वहाँ वह हर समय निगरानी में रहती थी। फिर भी मौका देख वह नग्न अवस्था में बाहर निकल कर अस्पताल कम्पाउंड में दौड़ लगाती थी और उसके पीछे पीछे उसे पकडने के लिए अस्पताल में आए लोग दौड़ते थे। उसे किसी तरह पकड़ कर तथा बेड पर बांध कर दवा देकर रखा जाता था। उसे एक समय चाहने वाला तथा उससे शादी करने का इच्छुक रमेश भी आज संयोगवश एक डाक्टर के रूप में उसी अस्पताल में कार्यरत है और वह रजनी को पहचान गया है। पर रजनी अपने दिमागी असंतुलन के चलते उसे नहीं पहचान रही है। उसकी अवस्था देख रमेश मन ही मन बहुत दुखी है परन्तु प्रगट नहीं होना चाहता है, क्योंकि वह भी अब शादीशुदा है। रमेश रजनी की दशा देख मन ही मन रोता है और वह उसे इस दशा में पहुंचाने के लिए अपनी माँ मायादेवी को जिम्मेदार ठहराता है। पर अब क्या हो सकता है। इधर रजनी की हालत रोज रोज और भी बिगड़ती जा रही है। अब तो उस पर किसी दवा का भी असर नहीं हो पाता है। और इस तरह यौन में तड़पती और यौन सुख की कामना मन में लिए हुए एक सुंदर काया वाली उस गरीब लड़की रजनी के जीवन का दुखद अंत अस्पताल में भर्ती होने के दश दिनों बाद हो जाता है।
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