अब तो आओ,श्री कृष्ण कन्हाई
भोगवाद स्याह घटाएं ,आच्छादित चारों ओर ।
क्रूर कंस सम मानव कृत्य,
धुंधली सी जीवन भोर ।
मंदित गुरु गौ सम्मान ज्योत ,
सर्वत्र अबला उत्पीड़न रुलाई ।
अब तो आओ,श्री कृष्ण कन्हाई ।।
हर कदम सही गलत ,
एक तराजू सह तोल ।
मौन व्रत पर सच्चाई,
बेईमानी प्रखर बोल ।
नैतिकता चीर हरण पर ,
प्रकृति सहमी संकुचाई ।
अब तो आओ,श्री कृष्ण कन्हाई।।
परिवार समाज संबंध,
अथाह स्वार्थ परिपूर्ण ।
मर्यादा विहीन आचरण,
सद्गुण सदाचार अर्थ अपूर्ण ।
देख पाश्चात्य चकाचौंध,
निज संस्कृति अकुलाई ।
अब तो आओ,श्री कृष्ण कन्हाई ।।
धर्म आस्था पर प्रहार ,
वासनामय चिंतन मनन ।
पाश्विकता का दामन थाम ,
दानवी राहों पर गमन ।
अब फिर सुदर्शन चक्र धर,
बनो जनमानस परछाई ।
अब तो आओ ,श्री कृष्ण कन्हाई ।।
कुमार महेन्द्र(स्वरचित मौलिक रचना)
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