देश के पहरेदार

देश के पहरेदार

देश के पहरेदार सिपाही ,
तुम सम जाॅंबाज कहाॅं ?
जो नाज‌ भारत का तुमपे ,
अन्य राष्ट्र का नाज कहाॅं ?
राष्ट्र राज तुमपे निहित ,
तुम होते जालसाज कहाॅं ?
जो काज तुम कर सकते ,
कोई कर पाता काज कहाॅं ?
जो फुर्ती होता तेरे तन में ,
वह फुर्ती रखे बाज कहाॅं ?
तुम्हीं तो भारत के लाल ,
तुम सम अरि खाज कहाॅं ?
टूट पड़ते तुम अरियों पर ,
तुम सम कहीं ताज कहाॅं ?
तुम्हीं राष्ट्र लाज रखवाले ,
अन्यत्र होता लाज कहाॅं ?
तुम राष्ट्र के गिटार मृदंग ,
तुम सम कोई साज कहाॅं ?
तुम्हीं कल आने जानेवाले ,
तुम सम यह आज कहाॅं ?
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ