इस बार सुविधा से बँध सकेगी राखी
मार्कण्डेय शारदेय
ऐसा कम ही होता है कि राखी बाँधने में सुविधापूर्ण समय मिले।हाँ; इस बार भी भद्रा है, पर अधिक इन्तजार नहीं करा पाएगी।इस बार 19 अगस्त (सोमवार) को सावन की पूर्णिमा मध्यरात्रि से भी अधिक है, पर भद्रा दिन में 1.25 तक ही है।यानी; दुपहर 1.25 के बाद अपनी सुविधा से कभी राखी बाँधी जा सकती है।कहा भी गया है:
“उपाकर्म्मदिने प्रोक्तमृषीणाञ्चैव तर्पणम् ।
ततोऽपराह्णसमये रक्षापोटलिकां शुभाम् "॥
आशय यह कि इस दिन अपराह्ण से ही रक्षाबन्धन मान्य है।
आजकल बाजार में एक-से-एक सुन्दर-मनोहर राखियाँ बिकती हैं, बाँधी भी जाती हैं।परन्तु; शास्त्रीय राखियाँ तो बनाई ही जा सकती हैं और उन्हें विधिवत् पूजकर ही बाँधी जा सकती हैं न!
वास्तव में अक्षत, पीली सरसों, स्वर्णखण्ड या सोने के टुकड़े के अभाव में सिक्के को ही एक साथ रेशमी कपड़े व किसी नए और निर्मल कपड़े में रखकर गाँठ लगाकर बाँधना है।फिर; उस पोटली को किसी बर्तन में रखकर जगत् के पालक श्रीहरि का ध्यान कर उस पर रोली अक्षत तथा फूल चढ़ाकर संक्षिप्ततः पूज लेना है।इसके बाद ही दिए गए मन्त्र से यजमान की कलाई में पुरोहित या भाई की कलाई में बहनें बाँधें:
"येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।तेन त्वां प्रतिबध्रामि रक्षे मा चल मा चल" ॥
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