दफ्तर की छीना- झपटी

दफ्तर की छीना- झपटी

डॉ रामकृष्ण मिश्र
दफ्तर की छीना- झपटी - सा
मौसम है बरसात का
नहीं किसी को लेना देना है
भावी आघात का।।
बड़े मजे में ठेले वाले
ठेल रहे थोड़ा जीवन
कुछ लाचारी में कुछ साहस
लिए -दिये चलते बेमन।
सडकों पर भी बटमारों का
डर रहता उत्पात का ।।


अबकी धान फेंक आया है
माली टोला का सुन्दर
सोंचा आहर में उमढ़ेगी
सागर जैसी खुब लहर
वर्षा के नक्षत्र चुक रहे
समय बूंँद-संपात का।।


आहर के गेड़े पर बैठा
हरखू सोच रहा इस काल
बादल की आना- कानी हे
भूजल भी तो गया
पताल।।
लगता शहर चला जाउँ
कुछ तो जुगाड़ हो भात का।। **********
रामकृष्ण


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