बारिश की आफत
- मनोज कुमार मिश्रसुन बाहर मत जाना घर से
सड़क पर पानी का पहरा है
घर सा सुकून है कहीं नहीं
यही मेघ अब कह रहा है
फंसी गाडियां गड्ढे छलकते
सड़क पर फव्वारा चल रहा है
महिलाएं परेशान चल रहीं
महरी का फोन न लग रहा है
ऑफिस की हो गई है छुट्टी
गृहणी का सर बड़ा दुख रहा है
चूल्हे पर हैं भजिया पकौड़े
टीवी ऊंचे स्वर में चल रहा है
झम झम जम के पानी बरसता
शहरों का जन जीवन ठहरा है
गांवों में भी है आफत आई
उफनता नाला ये कह रहा है
ढोर डंगर बेबस लाचार पड़े हैं
चारे का अभाव बड़ा गहरा है
हां खेती ने ओढ़ी है हरितिमा
उनका साज श्रृंगार सुनहरा है
अनावृष्टि से भले पीछा है छूटा
अब बाढ़ का खतरा गहरा है
बच्चों की किलकारी को सुन
मेरा दिल अब यह कह रहा है
उनकी खुशियों उछल कूद देख
लगता मांओं का टूटा पहरा है
घर के पालतू हैं दुबके दुबके
उनकी आंखों में डर पसरा है
झूमते बादल बरसता अंबर
एक हफ्ते से बस यही चेहरा है
चारो ओर बस पानी का मंजर
समंदर सा पानी यहां ठहरा है
भगवन बैठे बिना भक्त पुष्प के
मानव का स्वार्थ भी गहरा है
हे ईश्वर हे जगत पिता रोक जरा
इतनी कृपा से डर लग रहा है
अब बस कर ओ मेरे विधाता
इतनी ही प्रार्थना मन कर रहा है
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