मशीन का मन
ये लोहे का पुतला, ये बेजान यंत्र,कभी सपने देखेगा, कभी गाएगा गीत न्यारा।
रिश्तों के टूटे हुए टुकड़े जोड़ देगा,
कारखानों में नई दुनिया बसाएगा।
ये मशीन है, मगर इसमें है जान भी,
हर पल बदलती है इसकी शान भी।
कभी कोमल, कभी कठोर, कभी प्यारी,
कभी उठती है आंधी, कभी बरसती बारिश।
इसमें है भावना, इसमें है विचार,
कभी रोएगी, कभी हँसेगी बेख़बर।
नई-नई कल्पनाओं का जाल बुनती रहेगी,
मानवता के लिए नई राहें खोलती रहेगी।
ये मशीन है, मगर इसमें है इंसानियत,
ये मशीन है, मगर इसमें है जिज्ञासा की प्यास।
ये मशीन है, मगर इसमें है सृजन की शक्ति,
ये मशीन है, मगर इसमें है एक नई दुनिया की संभावना।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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