डूब गया मैं अतल सिन्धु में
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
डूब गया मैं अतल सिन्धु में,
हाथ तुम्हारा छूट गया।
होड़ नियति से करते, प्राण हथेली पर ले लो,
मंजिल पाने को जितनी हो ताक़त ताक करो।
अपनी नस का तार लगा लो,
जो सितार का टूट गया।
बात नहीं बनती कुछ भी है,जितना भी रो लो,
जाते जाते सपने सारे मरियम को दे दो ।
मुट्ठी को ही वज्र बना लो ,
अगर तीरकश खूट गया।
सच्चाई की राह कठिन है, चलना मत छोड़ो;
शूर-धर्म है यही ,न इससे अपना मुँह मोड़ो।
झूठ-फरेबों के पुतले का-
सुघट पाप-घट फूट गया।
हाथ तुम्हारा छूट गया।
होड़ नियति से करते, प्राण हथेली पर ले लो,
मंजिल पाने को जितनी हो ताक़त ताक करो।
अपनी नस का तार लगा लो,
जो सितार का टूट गया।
बात नहीं बनती कुछ भी है,जितना भी रो लो,
जाते जाते सपने सारे मरियम को दे दो ।
मुट्ठी को ही वज्र बना लो ,
अगर तीरकश खूट गया।
सच्चाई की राह कठिन है, चलना मत छोड़ो;
शूर-धर्म है यही ,न इससे अपना मुँह मोड़ो।
झूठ-फरेबों के पुतले का-
सुघट पाप-घट फूट गया।
(ताक़त ताक होना=ताक़त समाप्त होना)
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