बच्चों की दुनिया
बच्चों की दुनिया निराली ,बच्चों का जीवन है मस्त ।
बच्चे कभी हैं थकते नहीं ,
बच्चे रहते सदा हैं व्यस्त ।।
बच्चे तो होते ही हैं बच्चे ,
दिन भर करते हैं शरारत ।
दिनभर हॅंस खेलते कूदते ,
जैसे खेलकूद में महारत ।।
दिन भर सुनते रहते डाॅंट ,
कभी हैं वे बहुत पिटाते ।
फिर भी मन मानता नहीं ,
चोरी चुपके निकल जाते ।।
शरारत देख खूब डपटते ,
बचपना देख होते हैं खुश ।
ऊपर से वे क्रोध दिखाते ,
छड़ी उठाते जैसे हैं फूस ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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