सावन आया सावन जा रहा है ,
बरसाती मौसम भाव खा रहा है ।सता रही अब उमस भरी गर्मी ,
प्रखर रूप धूप ही दिखा रहा है ।।
काॅंवरियों के ये मौसमी यात्रा ,
हाय गजब अब ये तो ढा रहा है ।
कड़ाके की धूप कड़ाके की गर्मी ,
भोले भक्तों को ये सता रहा है ।।
भाई बहन का त्यौहार है आया ,
रक्षाबंधन का पावन प्यार लेकर ।
बहन की रक्षा भाई का आशीष ,
संकल्प संग यह व्यवहार लेकर ।।
बहन हेतु नववस्त्र और मिठाई ,
आया है भाई यह उपहार लेकर ।
बहन खड़ी है दरवाजे पे अपने ,
अनुज अग्रज का इंतजार लेकर ।।
शीघ्रातिशीघ्र यह खुशियाॅं आए ,
भाई बहनों का यह बहार लेकर ।
बाॅंधे बहना राखी भाई के कलाई ,
रोली चंदन राखी का थार लेकर ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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