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तुम हो

तुम हो

जिंदगी अब तो तुम्हारी हो गई है।
अब प्यार दो या दो कुछ और।
सफर वहीं तक है जहाँ तक तुम हो।
नजर वहीं तक है जहाँ तक तुम हो।।


हजारो फूल देखे हैं
इस गुलशन में मगर।
खुशबू वहीं तक है
जहाँ तक तुम हो..।।


बहुत मिले सफर में हमें मुसाफिर।
पर हमसफर तो तुम ही मिले हो।
लोग मिलते रहे और चलते रहे।
पर साथ चलने को तुम्हीं मिले हो।।


कितने लोग आते जाते है।
मिलने और मिलाने को यहाँ।
पर अपना बनकर तो देखो।
सिर्फ मेरे जीवन में तुम आये हो।।


उथल पुथल जब मचा हुआ था।
तुमने आकर थमा लिया था।
आते जाते सुख दुख में भी।
तुमने साथ निभाना सिखा दिया।।


पग पग पर कांटे बिछे थे।
पर चलना तुमने सिखा दिया।
और जीवन के काँटों को
तुमने कैसे देखो हटा दिये।।


तकदीर बदल जाती है नसीब से,
पर मेरा नसीब तो सिर्फ तुम हो।
सच कहे अगर तुमसे प्रिये तो
मेरे जीवन का आधार तुम हो।
बस तुम हो बस तुम हो।।


जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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