आओ, फिर से दीया जलाएं
जब जनमानस उद्वेलित हो,अथाह नैराश्य भावों से ।
हिम्मत नतमस्तक होने लगे,
अनंत संघर्षी घावों से ।
तब सकारात्मक सोच संग,
लक्ष्य ओर कदम बढ़ाएं ।
आओ, फिर से दीया जलाएं ।।
जीवन पर मंडराने लगे,
जब काली घटा घनघोर ।
दिशाभ्रमित हों प्रगति राहें,
आत्म विश्वास मंदित ठोर ।
तब आशा उमंग संचरित कर,
सफलता भव्य परचम लहराएं ।
आओ, फिर से दीया जलाएं ।।
जब अभिव्यक्ति पटल पर,
क्रोध समावेशित होने लगे ।
परंपराएं मर्यादाएं संस्कार,
निज अस्तित्व खोने लगे ।
तब सांस्कृतिक अभिरक्षा कर,
अपनत्व परम अहसास कराएं ।
आओ, फिर से दीया जलाएं ।।
जब शासन प्रशासन अंतर,
भ्रष्टाचार मुंह बोल रहा हो ।
पूरा तंत्र सही गलत तथ्य,
एक तराजू पर तोल रहा हो ।
तब प्रखर विरोध स्वर संग,
राष्ट्र सुषुप्त स्वाभिमान जगाएं ।
आओ ,फिर से दीया जलाएं ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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