सपनों की उड़ान
मत सपनों की ऊॅंची उड़ान भर ,तेरा अस्तित्व यह खो जाएगा ।
नहीं चाहता तू निज जो मन में ,
वही काम तेरा भी हो जाएगा ।।
पहले निज तू शक्ति तो देख ले ,
फिर अपना हस्ती तो देख ले ।
जाॅंच समझकर कदम बढ़ाना ,
पहले महॅंगी सस्ती तो देख ले ।।
सोच समझ ले अपनी क्षमता ,
फिर भर लो सपनों की उड़ान ।
जगता सपना ही सच्चा होता ,
जिससे पूर्ण होता हर अरमान ।।
पक्षी भी निज शक्ति है देखता ,
उतना है उड़ता ऊॅंचा आसमान ।
पुनः वापस धरा पर है पहुॅंचता ,
निज शक्ति का करता पहचान ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण ) , बिहार ।
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