वो फिर लौट के घर ना आए

वो फिर लौट के घर ना आए

मात पिता भार्या बच्चे,
उस दिन अति उत्साहित ।
तारीख वार शुभ मंगल,
उर खुशियां समाहित ।
ज्यों ज्यों ढली दोपहरी,
पर देहरी आहट ना पाए।
वो फिर लौट के घर ना आए ।।


भाई बहिन हर्षित गर्वित,
मित्रों संग सैनिक बखान ।
निहार अग्रज छाया चित्र ,
आतुर तत्पर हार्दिक सम्मान ।
बीत गए सारे प्रतीक्षा पल,
अब दर्शन बिन रहा ना जाए ।
वो फिर लौट के घर ना आए ।।


गांव चौक पर यार दोस्त,
कर रहे बस का इंतजार ।
फौजी मुख सेना बातें सुनने ,
दिल हो रहे थे बेकरार ।
ठीक समय बस आती देख ,
मन ही मन खूब हर्षाए ।
वो फिर लौट के घर ना आए ।।


देर शाम सरपंच मोबाइल पर,
मिला अप्रतिम सेना संदेश ।
सीमा रक्षा हित शहादत सुन,
सिहर उठा सारा परिवेश ।
पूरा गांव उमड़ा चौखट पर,
अमर शहीद जयकार लगाए ।
वो फिर लौट के घर ना आए ।।


कुमार महेन्द्र

(स्वरचित मौलिक रचना)
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