दायरा

दायरा 

मैं थोड़ा थोड़ा सब कुछ हूं,
और मैं पूरा कुछ भी नहीं।
कोई दायरा नहीं है,
बस एक अनंत सागर की गहराई।


मैं फूलों की कोमल पंखुड़ियों में,
और तूफानों की उग्र धारा में।
मैं चांदनी की शीतल चांदनी में,
और सूरज की तेज धूप में।


मैं हँसी के आँसुओं में,
और गम के गीतों में।
मैं जीवन के हर उमंग में,
और मृत्यु के हर रंग में।


मैं बच्चे की हंसी में,
और बूढ़े की आंखों में हूं।
मैं प्रेम की मधुर धुन में,
और विरह के गीत में हूं।


मैं सपनों के रंगीन संसार में,
और हकीकत के कड़वे सच में हूं।
मैं उम्मीद की किरण में,
और निराशा के अंधेरे में हूं।


मैं पहाड़ों की ऊंचाइयों में,
और समुद्र की गहराइयों में।
मैं हर कण में, हर ध्वनि में,
हर भावना में, हर क्षण में।


कोई दायरा नहीं है,
बस एक अनंत सागर की गहराई।
मैं थोड़ा थोड़ा सब कुछ हूं,
और मैं पूरा कुछ भी नहीं।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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