कठपुतली सा जीवन

कठपुतली सा जीवन

कठपुतली सा जीवन यह ,
रिमोट है राम के हाथ में ।
जबतक मर्जी हो चलाए ,
फिर कब बुलाए साथ में ।।
नाचनेवाले हमसब यहाॅं ,
नचाने वाला यह राम है ।
जबतक मर्जी है नचाता ,
फिर देता वह आराम है ।।
हम सारे राम के खिलौने ,
बिन उनके आराम कहाॅं ।
जीवन तो यह जीवन है ,
बिन उनके सुबे शाम कहाॅं ।।
जीवन तो राम ने है दिया ,
उसी ने चाभी भी भरे हैं ।
जितने दिन का है जीवन ,
उतने दिनों हेतु ही धरे हैं ।।
खेल सारे हैं उन्हीं ने भरा ,
वही खेल हम दिखाते हैं ।
उतने ही खेल हम खेलते ,
मृत खिलौने हो जाते हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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