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विचारों से "अपराध भाव" का नाश संभव है

विचारों से "अपराध भाव" का नाश संभव है

- अवधेश झा
विचारों से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। विचार से ही व्यक्ति बनता भी है और बिगड़ता भी है। विचार से ही समस्त अपराध भाव का नाश संभव है। इसलिए, हमेशा विचार करते रहना चाहिए। इस विषय पर जब मैंने जस्टिस राजेंद्र प्रसाद (पूर्व न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय, पटना) से बात किया तो उन्होंने कहा कि; "विचार ही व्यक्ति को महान बनाता है और महान विचार से ही महान से महान कार्य संभव है। समाज निर्माण में विचारों का महत्वपूर्ण स्थान है। जैसे विचार होगा, वैसा ही समाज का निर्माण होगा और सशक्त विचार से ही संपन्न और विकसित राष्ट्र का निर्माण संभव है। हमारा देश महान विचारों के लिए ही जाना जाता है और इसलिए, हम वैचारिक रूप से इतने संपन्न थे कि हम विश्व गुरु थे और वर्तमान में भी हैं। विश्व के सबसे उत्तम विचार "ब्रह्म विचार" हमारा वेद, उपनिषद, गीता, रामायण और महाभारत आदि ग्रंथ हैं। जो आदि काल से कालांतर तक के लिए महाविज्ञान है। सम्पूर्ण विश्व में इससे बड़ा क्या हो सकता है कि जो स्थान और काल से परे जाकर लिखा गया हो। इसलिए, वर्तमान में जो परिस्थितियों का निर्माण हो रहा है। उसमें अपराध का भाव संभावित है क्योंकि जो लोग वैचारिक रूप से भटक रहे है, उन्हें अपने मूल विचार जो जोड़ना होगा। जो तकनीक हम राष्ट्र निर्माण में लिए विसकित कर रहे हैं, उसका दुरुपयोग से ही राष्ट्र को क्षति हो रही है।"
वास्तव में, हम ऐसे वैचारिक रूप से संपन्न राष्ट्र हैं, जिसका विचार केवल अपने राष्ट्र के लिए तो है ही, साथ ही साथ सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिए है। हमारा विचार ही हमारा ज्ञान, विज्ञान और महाविज्ञान तथा महा अनुसंधान है। आदि काल से दो विचार धारा है; एक विचार धारा जो बुद्धि के सकारात्मक पक्ष को उजागर करता है तथा व्यक्ति अपने पुरुषार्थ का पालन करते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन करता है। दूसरा, बुद्धि के नकारात्मक प्रभाव में आकर अपने लिए कई विपरीत परिस्थितियों का निर्माण कर लेता है। लेकिन, सूक्ष्मता से देखा जाए और गीता भी स्पष्ट करता है कि कोई भी व्यक्ति किसी का नाश नहीं करता, बल्कि वह अपना नाश स्वयं करता है। जैसे ही अपराध का भाव उत्पन होता है, उसी समय से उस व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है। क्योंकि, अपराध हो जाना और अपराध का भाव विकसित होना दोनों में अंतर है। किन परिस्थिति में अपराध हो गया और कौन सा परिस्थिति का निर्माण कर अपराध किया गया; यह महत्वपूर्ण है। अपराध भाव से ही, अपराध की वृतियों का उदय होता है और यह वृतियां प्रारंभ में तो सूक्ष्म होता है, फिर धीरे धीरे विकराल हो जाता है। इसलिए, जैसे ही अपराध भाव का आभास हो, उसे अच्छे विचारों से नाश कर देना चाहिए।
अपराध क्यों बढ़ रहा है? तथा क्यों कोई अपराधी बन जा रहा है? वास्तव में देखा जाए तो अपराध का विचार बुद्धि से ही उत्पन होता है। इस विचार में चित का समर्थन, मन का निर्देश और अहंकार के प्रभाव से ही अपराध की वृतियों में तीव्रता आती है तथा अपराध का क्षेत्र काम, क्रोध, लोभ और मोह में आकर ही किया जाता है। इसलिए, अपराध एक विचार धारा है और इस विचार धारा को विचारों से ही समाप्त किया जा सकता है। हमारे देश में गुरुकुल परंपरा विकसित था जहां राम और कृष्ण जैसे विचारवान पुरुषोत्तम शिक्षा ग्रहण किए। आधुनिक समय में भी हमारे विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में पूर्ण व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ उच्च विचारों से दर्शन कराया जाता था। विचार ही हमारी पहचान थी और विचारों की हीनता से समाज को क्षति ही पहुंचती है। जो समाज, समाज निर्माण के विचारों में व्यस्त हुआ करता था। आज, उसी समाज को "अपराध के भाव" को समाप्त करने वाले विचारों से अपराध को समाप्त करने का दायित्व निभाना होगा। क्योंकि, अपराध भाव एक प्रज्वलित अग्नि की तरह है, एक उच्च गति की तूफान और बाढ़ की तरह है; जो संपूर्ण समाज को जला सकता है, डूबा सकता है, इसमें क्षति समाज और राष्ट्र को ही है। विश्व में जितने भी धार्मिक विचार हैं कोई भी विचार अपराध भाव को नहीं स्वीकारता है। भारत का इतिहास इसी विचारों से पूर्ण है। रावण जैसे त्रिलोक विजय को भी एक स्त्री हरण के अपराध में अपने समस्त प्रियजन के साथ मृत्यु के मुख में जाना पड़ा। यही, उदाहरण है कि महाभारत में कि दुर्योधन में अपराध का भाव जागृत करने वाला उसका अपना मामा शकुनि ही था, जो उससे ऐसे अपराध करा दिया जिसका नुकसान सम्पूर्ण कौरव वंश को चुकाना पड़ा। इसलिए, अगर आपके अंदर कोई अपराध भाव जागृत कर रहा है तो इससे भी सावधान रहें क्योंकि इसका नुकसान आपके साथ आपके अपनों को भी भोगना पड़ेगा और अगर यह भाव स्वत: जागृत हो रहा है तो अपने अच्छे विचारों से इसे समाप्त कीजिए और आप इस विचार को अपने स्वरूप में धारण कर लीजिए की आपका स्वरूप सर्वोत्तम विचारों का संग्रह निरपराध और पवित्र है। इसका संबध केवल सत्य से ही है और आपका आत्मा सत्य में ही स्थित है।
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