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आस्था के प्रसून खिलें हैं ,अरावली की कंदराओं में

आस्था के प्रसून खिलें हैं ,अरावली की कंदराओं में

शेखावाटी हरिद्वार उपमित,
लोहार्गल आकर्षण अद्भुत ।
पाप मोक्ष लक्षित जन मानस,
परम उपासना अंतर स्तुत ।
संस्कार परंपराएं अभिवंदन,
सनातन जोश उमंग फिजाओं में ।
आस्था के प्रसून खिलें हैं,अरावली की कंदराओं में ।।


रंग बिरंगी संस्कृति वेशभूषा,
ग्रामीण शहरी जीवन मिश्रण ।
नर नारी वरिष्ठ युवा बाल वृंद ,
हृदय आनंद अथाह संचरण ।
गीत भजन संवाद नृत्यों संग,
लोक झंकार मस्त अदाओं में ।
आस्था के प्रसून खिलें हैं,अरावली की कंदराओं में।।


निखर बिखर रही खुशियां,
मिट रहा दुःख कष्ट संताप ।
तीर्थ यात्रा भक्ति आराधना ,
धुल रहे मनुज संपूर्ण पाप ।
अनुपम सामाजिक समरसता ,
परिक्रमार्थी सेवा भाव निगाहों में ।
आस्था के प्रसून खिलें हैं,अरावली की कंदराओं में।।


गोगानवमी पुनीत पावन बेला ,
चौबीस कोसीय परिक्रमा आरंभ ।
समाज शासन प्रशासन पुलिस,
सहयोग शांति समुचित प्रबंध ।
दर्शन सर्व धर्म समभाव छटा ,
निर्मल हिलोर उर भावनाओं में ।
आस्था के प्रसून खिलें हैं,अरावली की कंदराओं में।।


* कुमार महेन्द्र*(स्वरचित मौलिक रचना)
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