एक कतरे का भी दिल में ग़र अहसास नहीं,

एक कतरे का भी दिल में ग़र अहसास नहीं,

वो समंदर भी अगर है तो कोई खास नहीं।


रिश्तों की डोर बंधे तो मजबूती से बंधे,
वरना ये धागे टूट जाएँगे आसानी से।


दिल में अगर किसी के लिए जगह नहीं है,
तो फिर ये दुनियाँ भी है तो बेमानी सी।


अश्कों की बूंदें बहती हैं आँखों से,
मगर दिल का दर्द कम होता नहीं कभी।


इंसानियत का दामन था कभी साफ़,
अब तो ये ज़ालिम करता नहीं है इंसाफ़।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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