मैं हूॅं चटपटा समोसा

मैं हूॅं चटपटा समोसा

मैं हूॅं चटपटा समोसा ,
जन जन ने मन पोसा ।
अहो भाग्य यह हमारा ,
अबतक कोई न कोसा ।।
ज़माने ने किया है पैदा ,
मेरे हेतु ही आया मैदा ।
नित्य खाए बना रोगी ,
मुझे वर्जित किया बैदा ।।
क्या बताऊॅं आपबीती ,
शनि हुए मुझपे सवार ।
पूॅंजीपति‌ हीन मुझे देखा ,
निर्धन ग्राहक बना गॅंवार ।।
फैशनी दुकान बैठा भाई ,
मेरा है अनुज यह डोसा ।
अग्रज हो अनुज बना मैं ,
सूखकर हुआ जैसे टोसा ।।
कद में छोटा पद में बड़ा ,
पद में भी हुआ मैं छोटा ।
बिक रहा खुले बाजार में ,
मुझ पर लगा जैसे कोटा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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