मुंह दिखाई

मुंह दिखाई

हमारे भारतीय समाज में रिश्तों का मुल्यांकन अब शादी ब्याह में लिये दिये जाने वाले उपहारों के आधार पर होने लगा है। पहले सम्मिलित परिवार किसी न किसी कारणवश टूटते चले गए, और अब लगता है कि उपहारों के मुल्यांकन के आधार पर रिश्तों के टूटने की बारी आ गयी है। आज कल शादी ब्याह में जो जितना कीमती उपहार देता है, वही सबसे प्रिय और नजदीकी रिश्तेदार माना जाता है। इस सम्बन्ध में आज एक कहानी आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ।
हमारे भारतीय समाज में पहले से ही एक परंपरा रही है कि कोई भी पिता अपने लड़की की शादी अपने समान हैशियत वाले या उससे उपर की हैसियत वाले परिवार में ही करता था, जिससे उसकी लड़की वहाँ सुखी जीवन व्यतीत कर सके। इस प्रकार की शादी से उसकी लड़की सुखी रहती थी। लड़कियों को हर शादी ब्याह तथा अन्य किसी मौके पर उन्हें अपने पिता के घर आदर से बुलाया जाता था। लड़की भी अपने तथा अपने परिवार की हैसियत के अनुसार आयोजन में न्योता तथा अन्य खर्च करती थी। आयोजन समाप्त हो जाने के बाद जब लड़की की पुनः पिता के घर से बिदाई होती थी तो उसे खोंइछा , जिसमें चावल , हल्दी, दुब और कुछ द्रब्य होता था, दिया जाता था। यही हमारी भारतीय परंपरा थी और ऐसे ही हमारा समाज चलता था। समय के अनुसार लड़की का परिवार सुखी अथवा दुखी हो, परंतु अपने मायके से बिदाई उसकी बुढ़ापे के उम्र तक बिना खोंइछा दिए नहीं होता था। मान्यताओं के मुताबिक बिना खोंइछा दिए बिदाई को अशुभ माना जाता था।
आज शाम को जब बुढ़ा मुरलीधर खेत बधार से घुम घामकर लाठी टेकते हुए जब अपने घर में प्रवेश करता है, तो देखता है कि उसकी पत्नी बुढ़िया राधिका अपने पिता के घर से लौट कर आ गयी है और खाट पर औंधे मुंह लेटकर सुबक सुबक कर रो रही हैं। उसके बगल में खाट पर बैठकर जब मुरलीधर उसको सहलाते हुए हाल चाल पुछता है तो वह और फफक कर रोने लगती है। वह उसे ढाढस बंधाता है और पुछता है तो राधिका भरे गले उसे बताने लगती है। वह कहती है कि आपने तो हमें शादी का न्यौता आने पर अपने पिता के घर भेज दिया था। आप अपनी अस्वस्थता के कारण खुद हमारे साथ नहीं जा पाये थे। ले जाने के लिए हमारे भाई भतीजों ने गाड़ी भेज दिया था। जब मैं उनके यहाँ पहुंची तो माता पिता के न होते हुए भी मेरा अच्छा सत्कार हुआ। भाई के लड़के की शादी हो रही थी और परिवार में खुब धुमधाम था। परिवार की अन्य नयी पीढ़ी की लड़कियां भी अपने परिवार के साथ आयी हुई थी। परिवार लोगों से खचाखच भरा हुआ था। शादी की हर रश्में खुब धुमधाम से रोज चल रहा था। हर मौके पर नयी पीढ़ी की लड़कियां और आमंत्रित बहुएं खुब पैसा लुटाती थीं। हल्दी, संगीत , चुमावन आदि हर मौके पर मुझे भी बुलाया जाता था। मैं भी रश्म के मुताबिक कुछ पैसे दे रही थी। परंतु दुसरो की तुलना में बहुत कम होते थे। परिवार की लड़कियां और बहुएं मुझ पर मुंह बिचकाती थी। खैर जो भी हो, मैं अपने सामर्थ्य के अनुसार सब रश्म किये जा रही थी। अब जब शादी ब्याह हो जाने के बाद नयी बहू घर में आयी तो , उसके मुंह दिखाई का रश्म होना था। बहू के सासु माँ ने उसे सजा धजा कर तैयार किया और एक एक कर सभी आमंत्रित औरत मर्द उसका मुंह घुंघट उठा कर देखने लगे और उपहार स्वरूप सोने चांदी के गहने तथा अन्य कीमती उपहार देने लगे। मुझे भी बहू का मुंह देखने के लिए बुलाया गया और मैं मुंह देखकर आशीर्वाद स्वरूप उसके हाथ में एक साड़ी और एक पांच सौ एक रूपये से भरा लिफाफा रख दिया। अपने सामर्थ्य अनुसार मैंने भी अपना फर्ज पुरा किया। परंतु मेरे मायके वालों के हाव भाव से यह स्पष्ट दिखता था कि वो मेरे उपहार से खुश नहीं थे। अब मेरा सत्कार भी उसी हिसाब से होने लगा।
एक दो दिन वहाँ बिताने के बाद मैंने अपने घर लौटने की बात उन लोगों के सामने रखी। उन लोगों ने बताया कि अभी तो गाड़ी दुसरी लड़कियों को पहुंचाने में व्यस्त है। अतः आप बस से चले जाइए। यह कहकर अगले दिन उन लोगों ने मुझे बस में बैठा दिया। मायके से विदाई के वक्त मैं इंतजार कर रही थी कि मुझे घर से खोंइछा मिलेगा। परंतु बिना खोंइछा दिए मुझे बस में बैठा दिया गया। मैंने अपने माता पिता के घर के
द्योढ़ी को प्रणाम किया और एक चुटकी वहाँ की मिट्टी को अपने आंचल में बांध कर बस में आकर बैठ गयी। अब बस जब यहाँ पहुचीं है तो उतर कर पैदल चलकर घर पहुंची हूँ।
मुरलीधर ने अपनी बुढ़ी पत्नी को ढाढस बंधाया और कहने लगा कि इसमें दुखी होने की कोई जरूरत नहीं है। हर आदमी की स्थिति हमेशा एक जैसा नहीं रहती है। हमलोगों की अमीरी में तुमने हर मौके पर उनलोगों के लिए खुब धुमधाम से सब कुछ किया है। अब इस हालत में भी तुमने उनका अनादर नहीं किया है, बल्कि अपने सामर्थ्य के हिसाब से अपना फर्ज निभाया है। आज कल पैसे का जमाना है और जिसका जितना बड़ा उपहार है , उसे उतना ही ज्यादा आदर मिलता है। 
 जय प्रकाश कुंवर
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