अरे भारत! उठ, आंखें खोल

अरे भारत! उठ, आंखें खोल

अनुभूत कर सनातन आभा,
निज संस्कृति ओर अग्रसर ।
तज पाश्चात्य जीवन शैली,
देख परा शुभ भोर असर ।
धूमिल हुए संबंध अंतर,
अपनत्व मधुरिमा घोल ।
अरे भारत! उठ, आंखें खोल ।।


धर्म आस्था पुनीत पावन,
सर्वदा मानवता हितकारी ।
जागृत सुषुप्त शक्तियां,
समस्या मूल उपचारी ।
शुद्ध सात्विक वैचारिकी संग,
चरित्र पट नैतिकता तोल ।
अरे भारत!उठ, आंखें खोल ।।


अंध भौतिक प्रगति पथ ,
नित्य मृग मरीचिका सम ।
यथार्थ परे भाव प्रदर्शन,
स्वार्थ निष्ठता हर कदम ।
यंत्र सदृश मनुज महत्ता ,
संकट काल मंद मेलजोल ।
अरे भारत! उठ, आंखें खोल ।।


संस्कार मर्यादा परंपराएं,
परिवार समाज अहम अंग ।
जननी जन्म धरा नारी वंदन ,
सर्वत्र खुशियां उत्साह उमंग ।
साहस शौर्य आत्म विश्वास संग ,
सदा बुलंद कर तिरंगी बोल ।
अरे भारत! उठ, आंखें खोल ।।


महेन्द्र कुमार

(स्वरचित मौलिक रचना)
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