Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

स्वीकार नहीं है..

स्वीकार नहीं है..

अर्थहीन बनकर जीना स्वीकार नहीं है।
वत्यचक्र में फस कर रहना स्वीकार नहीं है।
विस्मित ना हो विचलित न हो कर चेष्टा तुम
चरायंध भरा जीवन जीना स्वीकार नहीं है।
तिरस्कार किया है जिसने उसे भी अपना मान।
निर्दिष्ट भी होंगे साथ तेरे कर्म पथ को पहचान।
चैतन्य में आकर फिर से साध तू लक्ष्य को अपने
घोघा बसंत बनकर रहना स्वीकार नहीं है।
कुंठित लोगो को समझना अब! व्यर्थ ही है।
भयभीत होकर जीवन जीना अब व्यर्थ ही है।
है क्षितिज तेरे सम्मुख, तू आगे बढ़ना सीख
यूं टुकड़ों पर पलना बिल्कुल स्वीकार नहीं है।
हर विपदाओं को जैसे, तुमने पार किया है।
पथरीली पगडंडी को भी तूने स्वीकार किया है।
रस्सी जैसे उलझे जीवन को सुलझाया है
क्योंकि उलझा जीवन जीना स्वीकार नहीं है।
पूजा भूषण झा
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ