खामोशियों की आवाज़
कौन कहता है खामोशियाँ ख़ामोश होती हैं
कभी ख़ामोशियों को ख़ामोशी से सुनो
ख़ामोशियाँ तो वो कह देंगी
जिनकी लफ़्जों में तलाश होती है
ये पंक्तियाँ कितनी सच कहती हैं,
खामोशी अक्सर शब्दों से ज़्यादा बोलती हैं।
दिल की गहराइयाँ, आँखों की नमी,
ये सब खामोशियों में ही समाती हैं।
जब शब्दों में न बयां हो पाए दर्द,
तब खामोशी ही सहारा बनती है।
ये एक ऐसा सागर है, गहरा और अथाह,
जिसमें जीवन की सारी कहानियाँ समाती हैं।
ये खामोशियाँ, ये सन्नाटे, ये खालीपन
कहते हैं बहुत कुछ, बयान करते हैं मन
दिल की गहराइयों से उठते हैं ये नाद
जो शब्दों में कभी बयां न हुए, कभी न आए
कभी खामोश बैठ कर अपने भीतर झाँको
ये खामोशियाँ तुम्हें बहुत कुछ बताएँगी
तुम्हारे सवालों के जवाब ढूँढेंगी
तुम्हारे दिल की बातें बयान करेंगी
ये खामोशियाँ हैं दरअसल, शब्दों से परे
ये हैं भावों की भाषा, ये हैं मन की कविता
ये हैं जिंदगी के सच, ये हैं हकीकत
जिनको समझने के लिए बस थोड़ा सा वक्त
ये खंडहरों की दीवारें, ये उजड़े घर
ये सूखे पेड़, ये टूटी हुई कलम
कभी खामोशियों को सुनो, इन्हें महसूस करो
ये कहानियां बयां करती हैं, दिल को छूती हैं
ये रात की चांदनी, ये समुद्र की लहरें
ये पहाड़ों की चोटियां, ये नदियों का बहाव
कभी खामोशियों को सुनो, इन्हें निहारो
प्रकृति की आवाज़, ये सच बयां करती है
तो आओ, मिलकर सुनें इन खामोशियों को
इनकी भाषा समझें, इनको करें स्वीकार
ये खामोशियाँ हमें जीने का मकसद देती हैं
ये खामोशियाँ ही हमें और करीब लाती हैं
तुम क्या कहोगे, मेरे दोस्तों?
क्या तुमने कभी खामोशियों को सुना है?
क्या तुम भी मानते हो कि .......
खामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं?
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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