सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर

सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर

दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं,
नारी दुष्कर्म उत्पीड़न घटनाएं ।
पाश्विक हुआ सामाजिक परिवेश,
सोच अंतर वसित वासनाएं ।
शासन प्रशासन मौन धारण,
पर प्रतिशोध हित हुंकार भर।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।


अनुभूत निज शक्ति सामर्थ्य,
उर स्वाभिमानी ज्योत जला ।
अभय पथ पर गमन कर,
दिखा अबला जलजला ।
जो डाले तन पर कुदृष्टि,
उनके विरुद्ध ललकार धर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।


ज्ञान विज्ञान शिक्षा खेलकूद,
हर क्षेत्र अग्र कदम रख ।
अभिव्यक्त सही गलत स्पर्श ,
फिर भावी परिणाम परख ।
तज शर्म संकोच मर्यादाएं ,
खोज दानव प्रहार अवसर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।


उरस्थ संपूर्ण सृष्टि ओज ,
साहस शौर्य दिव्य सरिता ।
नैतिकता मुख मंडल स्वर,
परिवार समाज भव्य संहिता ।
सदा अभिवंदित नारीत्व प्रभा
सहर्ष हर चुनौती स्वीकार पर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।


*कुमार महेन्द्र *

(स्वरचित मौलिक रचना)
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