शस्त्र अपने संभाल लो

लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|
- मनोज कुमार मिश्र
उठो धरा के वीर पुत्र
शस्त्र अपने संभाल लो
कर किनारे मतभिन्नता
शत्रु का बस संहार करो
है बात अब अस्तित्व की
कब तक लड़ोगे तर्क से
ये युद्ध टल न सकेगा अब
झिझको नहीं प्रचंड रण से
अपना कुरुक्षेत्र संभाल लो
अपने सर पर यह भार लो
रग रग में रक्त प्रवाह रहे
भुजदंडों का वृहत प्रभाव रहे
कोई दया अब नहीं करना
बस न्याय का सम्मान रहे
दुष्टों से प्रीति नहीं अच्छी
दुष्टों पर दया कमजोरी है
दुष्टों का दलन है धर्म प्रवण
विचारों का बदलना जरूरी है
मानवता का करना चीर हरण
है जिनका बस काम यही
वो क्या सुनेंगे सुधर्म सुमति
जिस धर्म की नीति कत्ल रही
बहु बेटियों की लाज का प्रश्न
कर रही कातर करबद्ध प्रार्थना
प्रहार, संहार, समूल विनाश हो
बस इतनी ही अब अभ्यर्थना
अब धर्म मांगता शोणित है
यह समर शीश को तत्पर है
या अरि का काट मर्दन कर दो
या स्वयं समर्पित तन कर दो
दोनों में ही यश पाओगे
निज धर्म धरा बचाओगे
मानवता तब ही बच पाएगी जग में जय जयकार करवाएगी
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