कांग्रेस ने मजहबी आधार पर भारत विभाजन के साथ मुसलमानों को क्यों रखा भारत में?

कांग्रेस ने मजहबी आधार पर भारत विभाजन के साथ मुसलमानों को क्यों रखा भारत में?

यह प्रश्न उस समय भी जन साधारण की नींद हराम कर रहा था और आज भी कर रहा है। संबल राजनीतिक पार्टी के रूप में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने बार बार रंग रोगन करके इसका जवाब "हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई " के रूप में दिया, आज भी दे रही है, और आगे भी देती रहेगी। किंतु अंध कांग्रेस समर्थक के अतिरिक्त किसी अन्य को न उस समय यह कारण पचा था न आज पंच रहा है न आगे पचेगा। आज के दौर में यह सवाल पुनः ज्वलंत हो रहा है। इसका कारण है एक और विभाजन का आसार.....। ओशो का कथन याद आ जाता है कि "भाई-भाई" कहोगे तो भाई अपना हिस्सा तो मांगेगा ही और आज नहीं तो कल देना भी पड़ेगा। 1947 में दो भाई थे तो दो हिस्सा बना। कालांतर में "हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई" चार भाई बना लिए गए तो अब चारों अपने हिस्से की दावेदारी करते हैं।
मेरा यह मानना है कि भारत में जब गांधी बाबा सक्रिय राजनीति में आए और अशांति के दूत कहे जाने वाले तिलक जी की राजनीति को हैक कर लिए। तदुपरांत जलियां वाला बाग कांड से हिंदू-सिख को उनकी औकात बताई गई। यही से यह संदेश दिया गया कि अब मुसलमान को लेकर राजनीति करनी है। इस्लाम परस्त लोगों को आगे रखना है। पक्ष एवं विपक्ष दोनों उन्हीं द्वारा गवर्न होना है। जलियांवाला बाग के हत्यारों को गांधी बाबा ने माफ करके अपनी सहृदयता दिखलाई जबकि उनके घर के किसी सदस्य को खरोंच तक नहीं आई थी। खलीफात आंदोदन को धूर्तता वश खिलाफत आंदोलन नाम देना भी हिंदुओं के शोषण का एक आयुध था। मोपला कांड को इतिहास से उड़ा करके पुनः हिंदुओं को छला गया। असहयोग आंदोलन चलाकर अंडरग्राउंड समस्त क्रांतिकारियों को उनके ठिकाने सहित विश्वास में लेकर सामने लाया गया। तत्पश्चात चौरी चौरा की घटना की आड़ में आंदोलन वापस ले लिया गया। अब एक एक कर उन क्रांतिकारियों का सफाया हुआ। मजबूरन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बनाया गया।
जो कांग्रेसी मुस्लिम तुष्टिकरण के विरुद्ध या हिंदू शोषण के विरुद्ध आवाज उठाता उसे कांग्रेस से बाहर जाना पड़ता। फिर अंग्रेजी कुत्ते उनके पीछे छोड़ दिए जाते। रही सही कसर गांधी-इरविन समझौते ने पूरा कर दिया। इस समझौते ने भारत के लगभग सभी क्रांतिकारियों का सफाया कर दिया। लाल-लाल तो पहले ही निबटाए जा चुके थे।
अब सिर्फ दो लोग आंखों की किरकिरी थे। प्रथम, सांवरकर जी को गृहकैद में रखा गया और दूसरे नेताजी को लाचार होकर विदेश भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। मालवीय जी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। अम्बेडकर जी को चारा फेंककर फंसाया गया।
भारत छोड़ो आंदोलन के नाम पर एक विशेष अहिंसा जो हिंसा से भी अधिक हिंसक थी, चलाई गई। चौरी चौरा में दो दर्जन नरसंहार से आंदोलन वापस लिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन में लाखों लोग मारे गए और आंदोलन फलता फूलता रहा। जिन्ना का डायरेक्ट एक्शन भी भारत ने इसी आंदोलन के साथ झेला। क्रूर भारत विभाजन की कराया गया।
अब तक भारतीय हिंदू का किंग्रेस से मोह भंगा हो चुका था। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों मुस्लिम परस्त जगजाहिर हो चुके थे। गांधी के प्रिय नेहरू जी मतदान में जीरो साबित हुए जिसका रुझान पहले से ही मिल गया था। अब कांग्रेस को सरकार बनाने और चलाने के लिए मुस्लिमों का ही भरोसा था और कांग्रेस ने बड़ी ही सफाई से चाल चल दी। भाईचारे की आड़ में मुसलमानों को रोका जाने लगा। हर कीमत देने को गांधी-नेहरू तैयार दिखे। मुस्लिम लीग भारत में भारतीय मुस्लिम लीग बनी। आर एस एस को हिंसक साबित करके त्याज्य बनाया गया और फिर प्रतिबंधित कर दिया गया।
नेतृत्व विहीन हिंदू , हत्यारी भारतीय मुस्लिम लीग से दूरी बनाकर एकमात्र विकल्प कांग्रेस की तरफ हो लिए। सब मिलाकर कांग्रेस को स्थाई और लम्बी अवधि तक सरकार चलाने के लिए मुस्लिम का ही सहारा था इसलिए हिंदुओं का विनाश कर करके उनको अपनी ओर आकर्षित किया गया।
आज के दौर में कांग्रेस के साथ ही की अन्य पार्टियां भी हिंदू-दमन के एवज में मुस्लिम को लुभा रही हैं।

डॉ अवधेश कुमार अवध
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