ग्रीष्म से तर बतर हुए हैं ,
तपन से हुआ बुरा हाल ।बगीचे में ले खाट बिछाए ,
वृक्ष तले लगा चौपाल ।।
उसी मार्ग राही गुजरते ,
गर्मी से जब हुए बेहाल ।
बैठक देख राहत मिली ,
पोंछे पसीना रुक भाल ।।
वृक्ष तले हवा जब मिली ,
तब होते हैं वे खुशहाल ।
पुनः अपनी राह लिए हैं ,
बगीचे से होकर निहाल ।।
कोई पैदल कोई बाईक ले ,
कोई साईकिल से बेहाल ।
एक वृक्ष हमें छाया है देता ,
प्रति ग्रीष्म कई कई साल ।।
वृक्ष लगाओ फल ये खाओ ,
छाया पाओ चारपाई डाल ।
व्याज में शीतल हवा ले लो ,
ओ प्यारे तू भारत के लाल ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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