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मार मत कर, रार मत कर

मार मत कर, रार मत कर

(बंग्लादेश पर)
मार्कण्डेय शारदेय
काफिरों का देश है मैं भी रहा काफिर पुराना।
जब न काफिर था, तभी से है यहीं मेरा ठिकाना।
तू कभी काफिर न था क्या? था न तू! सच-सच बताना,
हम न करते भेद जन में दिल खुला बँटता खजाना।।
प्रेम की, सौहार्द की हमने सदा फसलें उगाईं।
आदमीयत के लिए हमने लड़ी हरदम लड़ाई।
चाह है संसार में हो शान्ति का साम्राज्य कायम,
सब जिएँ सुख-चैन से श्रमसाध्य हो उन्नत चढ़ाई।।
कब दिया धोखा किसी को? कब घुसेड़ी थी कटारी?
बेगुनाहों पर बना था कब कहाँ निर्दय शिकारी?
कब किसी की जिन्दगी की छीन ली थीं बची साँसें?
कब जताईं ख्वाहिशें हम ही रहें, दुनिया हमारी?
नेकदिल हम नेकदिल पर प्यार हैं हरदम लुटाते।
लूटना भी जानते, पर लूट को हैं दुरदुराते।
हम न दुश्मन मानते हैं, दुश्मनों पर रहमदिल हैं,
अति नहीं स्वीकारते अति-अन्त जोड़ी कर दिखाते।।
गो नहीं हैं, सिंह हैं, पर भगवती की बन सवारी।
मातृवाहन हैं, सदय हैं, प्रकृति अपनी कब बिसारी?
माँ कहें तो खत्म कर दें कोटि दैत्यों को निमिष में,
अनय के आतंक के विपरीत हम, समता-पुजारी।।
सुन; न बो तू जहर दिल में रह यहाँ रहने हमें दे।
आदमी है अगर तू तो आदमी कहने हमें दे।
पशु बनेगा, पाश में हम बाँधना भी जानते हैं।
मार मत कर, रार मत कर, सह न, मत सहने हमें दे।।
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