शुचिता , शुद्धता , पवित्रता , पावनता
मन के सारे हार है ,मन के जीते जीत ।
मन पे काबू पाया ,
मन जीवन के मीत ।।
मन हो जब पावन ,
पावन मन शृंगार है ।
मन हो विचलित न ,
तब जीवन प्यार है ।।
शुद्ध मन प्यार करो ,
मृदुल ही उद्धार है ।
शुद्ध मन जीवन का ,
मूल बना आधार है ।।
पावन जीवन महिमा ,
यही जीवन सार है ।
बिन पावन लेता मन ,
करवटें ये हजार है ।।
करवट ही जीवन का ,
माया का बाजार है ।
बिन चाहे द्वंद्व जीवन ,
लेता नहीं किनार है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com