शुचिता , शुद्धता , पवित्रता , पावनता

शुचिता , शुद्धता , पवित्रता , पावनता

मन के सारे हार है ,
मन के जीते जीत ।
मन पे काबू पाया ,
मन जीवन के मीत ।।
मन हो जब पावन ,
पावन मन शृंगार है ।
मन हो विचलित न ,
तब जीवन प्यार है ।।
शुद्ध मन प्यार करो ,
मृदुल ही उद्धार है ।
शुद्ध मन जीवन का ,
मूल बना आधार है ।।
पावन जीवन महिमा ,
यही जीवन सार है ।
बिन पावन लेता मन ,
करवटें ये हजार है ।।
करवट ही जीवन का ,
माया का बाजार है ।
बिन चाहे द्वंद्व जीवन ,
लेता नहीं किनार है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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