एक बार पुनः

एक बार पुनः

जो कहते हैं चरखे से ही आजादी आयी थी,
नेहरू गाँधी ने अंग्रेजों को आँख दिखायी थी।
वो दे़खें कैसे कैसे कष्ट उठाये थे, दिवानों ने,
दी खुद की कुर्बानी, तब आजादी पायी थी।

निकल पड़े थे सड़कों पर, निज घर को छोडा,
अंग्रेजों ने लाठी मारी, लालाजी का सिर फोडा।
सजा मिली थी काला पानी, दो जन्मों तक की,
किया समन्दर पार तैर, सावरकर ने कारा तोड़ा।

जाने कितने वीरों ने कुर्बानी दी थी,
भगत सिंह- आजाद, जवानी दी थी।
लडता रहा सुभाष, देश की खातिर,
तब भारत को, नयी कहानी दी थी।

जाने कितनी माँओं ने अपने बेटे खोये थे,
कितनी ललनाओं ने, अपने सुहाग खोये थे?
कितने बूढ़े कन्धों ने, बेटों की अर्थी ढोयी थी,
जाने कितनी बहनों ने, अपने भाई खोये थे?

लक्ष्मी ने कुर्बानी दी, तब आजादी आई थी,
आजाद मरे थे गोली से, तब सत्ता घबराई थी।
जाने कितने गुमनामी में, फाँसी फंदा चूम गये,
जब लहू बहा सड़कों पर, तब आजादी पाई थी।

अ कीर्ति वर्द्धन

हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ