रामभक्त हनुमान
अंजनी पुत्र तुम कहलाते ,तुम्हीं कहलाते बज्र अंगी ।
पवनसुत तुम्हीं कहलाते ,
शिवतनय तुम्हीं बजरंगी ।।
अहिरावण दोउ भाई उठा ,
पाताल ले बनाया है बंदी ।
शीघ्र ही पाताल सिधारे ,
शीघ्र छुड़ाए बन प्रतिद्वंद्वी ।।
संकटमोचन तुम कहलाते ,
भक्तों के बढ़ाते तुम भान ।
भक्त तुम्हें जिसने पुकारा ,
दौड़े जाते तुम हनुमान ।।
राम की सच्ची भक्ति कर ,
हो गए तुम देव समान ।
तुम्हें नमन है हे मेरे प्रभु ,
जय रामभक्त हनुमान ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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