जो जिये खुद के लिये, वह मरे समान हैं,
राष्ट्र हित जो जी रहे, उन पर अभिमान है।जीवन की अवधारणा, परहित में निहित है,
स्वहित की भावना, मानवता का अपमान है।
हिन्दुओं पर आक्रमण, अल्पसंख्यक करते रहे,
ईसा- मूसा सारे मिल, धर्म परिवर्तन करते रहे।
सहिष्णु हिन्दू बना, सबके आघात सहता रहा,
वसुधैव कुटूम्ब कहते रहे, शरणार्थी बढ़ते रहे।
जहाँ कहीं अल्पसंख्यक हिन्दू, जीवन के लाले पड़े,
हिन्दुओं के घरों पर, कुछ मजहबियों के ताले पड़े।
बहन बेटियाँ व्यथित हो, मरने को मजबूर हो रही,
जान बचाने को भागते भागते, पैरों में छाले पड़े।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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