क्या लाया क्या ले जाएगा
कहाॅं कबतक तू रख पाएगा ।
जैसे लूट लाया तू किसी से ,
निज धन किसी से लुटाएगा ।।
क्यों हाय हाय करता तू बंदे ,
कितना धन कबतक खाएगा ।
तेरे बेटे होंगे जुआरी शराबी ,
वही बेटा तेरा सब बेंचवाएगा ।।
देखता रहेगा तू भी तो यों ही ,
चारा भी तेरा चल न पाएगा ।
सोचते सोचते तू भी एकदिन ,
समय पूर्व तू बूढ़ा हो जाएगा ।।
दवा बिन भी तड़पेगा यों ही ,
एकदिन पटखनी तू खाएगा ।
आएगी मौत तुझको ले जाने ,
क्या लाया क्या ले जाएगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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