प्यार

प्यार

प्रथम प्यार किया था तुमने ,
फिर क्यों करते हो तकरार ।
पहले इजहार किया खुशी ,
फिर क्यों करते हो इन्कार ।।
मैंने तो की तुम पर भरोसा ,
तुमने भी की थी ऑंखें चार ।
कैसी हवा में मैं भी बही थी ,
आज कैसी यह बही बयार ।।
दिल होता है खिलौना नहीं ,
खिलौना नहीं करना प्यार ।
मैं नहीं कहीं अब जानेवाली ,
चाहे जान से दो मुझको मार ।।
अति का अंत होता अवश्य ,
लगाऊॅंगी मैं न्याय का गुहार ।
चाहे संघर्ष पड़े मुझे करना ,
मानूॅंगी नहीं मैं जीवन से हार ।।
माता पिता को छोड़ी हूॅं मैं ,
क्यों तेरी पैनी हुई यह धार ।
निज मन विचार तो कर ले ,
मत कर तू ऐसा व्यभिचार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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