फिर एक निर्भया

फिर एक निर्भया

कहने को कहते सम्मानित नारी ,
नारी को मिलता है सम्मान कहाॅं ।
सदा चढ़ती दुराचारियों के हत्थे ,
जैसे नारियों की अरमान कहाॅं ।।
नित्य चढ़तीं दुराचारियों से बलि ,
नारियों के सपने साकार कहाॅं ।
चढ़ रहीं नित्य ही नारियाॅं बलि ,
बलात्कारियों में है सुधार कहाॅं ।।
कहते नारी जिऍं निर्भय होकर ,
किंतु निर्भयता का आधार कहाॅं ।
निर्भय नारी पुनः निर्भया बनी है ,
बलात्कारी मानता है हार कहाॅं ।।
नारी बलात्कारी के फंदे चढ़ती ,
दुराचारी को किसी से प्यार कहाॅं ।
लाचार नारी जीवन निज हारती ,
किंतु दुराचारी मानता हार कहाॅं ।।
सरकार नारियों को निर्भयता दे ,
जी सके नारी भी अरमान लेकर ।
हॅंस खेलकर बीताए वह जीवन ,
सामाजिक प्रतिष्ठा सम्मान लेकर ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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