कैसे तेरा कर्ज चुकाऊॅं

कैसे तेरा कर्ज चुकाऊॅं

तिरंगे ने कहा शहीदों से ,
कैसे तेरा कर्ज चुकाऊॅं ।
तूने मुझे दिया है जीवन ,
कैसे तुझको मैं जियाऊॅं ।।
जिस मिट्टी जन्म लिए थे ,
उसी मिट्टी तन मिला है ।
तुझसे मिट्टी शक्ति बढ़ी ,
तुझसे भारत ये खिला है ।।
दे न सकता तेरी माॅं को लाल ,
लाल रूप ही गगन लहराऊॅं ।
तेरी यश कीर्ति बलिदान सुना ,
जन जन उर मैं गहराऊॅं ।।
मरे कहाॅं तुम अमर हुए हो ,
तुम्हारी गाथा मैं गाता रहूॅ़ंगा ।
तेरी कुर्बानी सबको सुनाकर ,
दुश्मन को मैं हिलाता रहूॅ़ंगा ।।
सुनो शहीद लाल की माता ,
तेरा लाल यह मुझमें है ।
लाल तेरा सदा यह जीवित ,
जबतक तिरंगा तुझमें है ।।
जबतक जीवित मैं धरा पर ,
जीवित तेरा ये लाल रहेगा ।
सुना रहा आज जो जमाना ,
गौरवगाथा आनेवाला काल कहेगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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