आज आंगन सुन हो गइल।
बिटिया आपन ससुराल चल गइल।।भर दिन आंगन में चहकत रहल।
बाबूजी के खुब कइलस सेवा टहल।।
माई कहीं बैठल रोवत बाड़ी।
सुध नइखे कपड़ा साड़ी।।
अब एगो नया बिहान भइल।
जिनिगी बेटा बहु पर ठहर गइल।।
सब बा, पर बेटी के सुख ,
माई बाप के केहू ना देवे पाइ।
इहे बतिया सोच सोच के,
पूकाफार के रोवत बाड़ी बिटिया के माई।।
जय प्रकाश कुवंर
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