मौन भी अपराध है

मौन भी अपराध है

भ्रष्टाचारी, दमनकारी, व्यभिचारी, मिथ्यावादी एवं पाखंडी व्यक्ति, संस्थाओं , शासन -प्रशासन एवं उसके सहयोगियों के विरुद्ध मौन एवं तटस्थ रहने वाला समाज, उनके समान ही अपराधी है।

एक सजग नागरिक का दायित्व:-
हम अक्सर सुनते हैं कि "मौन स्वीकृति का प्रतीक है"। यह वाक्य विशेष रूप से उन स्थितियों में सत्य होता है जहां अन्याय, भ्रष्टाचार या अत्याचार हो रहा हो। जब हम इन कुकृत्यों के विरुद्ध आवाज नहीं उठाते, तो हम न केवल इन कृत्यों को बढ़ावा देते हैं, बल्कि स्वयं भी अपराध के भागीदार बन जाते हैं।

उपरोक्त कथन में कहा गया है कि भ्रष्टाचारी, दमनकारी, व्यभिचारी, मिथ्यावादी और पाखंडी लोगों के खिलाफ मौन रहना भी एक अपराध है। यह एक गंभीर सत्य है। जब हम इन लोगों के खिलाफ खड़े नहीं होते, तो हम एक ऐसे समाज का निर्माण करते हैं जहां अन्याय पनपता है और सत्य का दमन होता है।

मौन का खामियाजा :- जब हम मौन रहते हैं, तो हम अपने अधिकारों और स्वतंत्रता को खोने का जोखिम उठाते हैं। हम एक ऐसे समाज में जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं जहां भय का माहौल होता है।
समाज का दायित्व :- एक समाज के रूप में, हमारा कर्तव्य है कि हम अन्याय के खिलाफ खड़े हों। हमें अपने नेताओं और अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना चाहिए। हमें भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
व्यक्तिगत दायित्व :- व्यक्तिगत रूप से, हमें अपने भीतर सत्य और न्याय की आवाज को जगाना चाहिए। हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान करना चाहिए।

मौन रहना एक विकल्प नहीं है। हमें अपने समाज को बेहतर बनाने के लिए आगे आना होगा। हमें भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी होगी। हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जहां सभी को समान अधिकार हों और जहां न्याय का राज हो।

"अंधेरे में एक दीया जलाने से क्या होता है? अंधेरा दूर हो जाता है।" इसी तरह, एक व्यक्ति की आवाज भी एक बड़ा बदलाव ला सकती है। हमें अपने भीतर की उस आवाज को जगाना चाहिए और उसका पालन करना चाहिए।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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